सेवक सिक्ख हमारे तारिय, चुनि–चुनि शत्रु हमारे मारिय। जो हो सदा हमारे पच्छा, श्री असिधुजजी करियहु रच्छा। मैं न गनेसहिं प्रथम मनाऊँ, किशन–विशन कबहूँ नहीं ध्याऊँ। महाकाल रखवार हमारे, महालोह मैं किंकर थारे। अपना जान मुझे प्रतिपारिय, चुनि–चुनि शत्रु हमारे मारिय। ×