ट्रस्ट के दस्तावेज में (सन् 1830 ई.) स्पष्ट प्रतिबन्ध रखा गया था कि इस समाज में होनेवाली पूजा में किसी भी ऐसी सजीव या निर्जीव वस्तु की निन्दा नहीं की जाएगी, जिसकी थोड़े से लोग भी पूजा या आराधना करते हों तथा इस समाज में केवल ऐसे ही उपदेश किए जाएँगे, जिनसे सभी धर्मों के लोगों के बीच एकता, समीपता और सद्भाव की वृद्धि होती हो।