इसी आन्दोलन के नेताओं ने मुल्लाओं से फतवा लेकर मुसलमानों में यह घोषणा करवाई कि भारत दारुल–हरब नहीं, दारुल–इस्लाम है और जो लोग जुमे के दिन सामूहिक नमाज नहीं पढ़ते, वे धर्म–विरुद्ध काम करते हैं, क्योंकि अंग्रेज बहादुर किसी के धर्म में कोई दखल देना नहीं चाहते।