आज तक हम व्यक्तियों को ईश्वर का अवतार मानते आए हैं। किन्तु ईश्वरावतार की अनुभूति जब व्यक्ति में नहीं होकर, सारे समूह में होने लगेगी, तभी नई मानवता का आविर्भाव होगा, तभी आज की मानवता किसी उज्ज्वलतर मानवता में रूपान्तरित होगी, तभी मनुष्य मात्र का पुनर्जन्म होगा और तभी संसार की नवीन रचना सम्भव होगी।