इस्लाम के प्रति यूरोप का यह द्रोह–भाव प्रथम विश्व–युद्ध के अन्त में होनेवाली सन्धि–वार्ता में और भी प्रत्यक्ष हुआ जब सन्धि के शर्तनामे के अनुसार टर्की का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया और संसार में कोई भी ऐसा इस्लामी राज्य नहीं रह गया, जो अपने को स्वाधीन कह सके।