ईसाई प्रचारक भारतीय समाज से अलग रहते थे, इसलिए, जनता को यह जानने का अवसर नहीं था कि उनके वैयक्तिक जीवन में कितनी सरलता और कितना तप है। उनकी प्रशंसा करनेवाले नव-शिक्षित हिन्दुआें ने समाज में अपने आचार का जो प्रमाण दिया, वही आचार ईसाई पादरियों का भी मान लिया गया