Abhishek Anand

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गार्हस्थ्य को लोग बहुत–कुछ अनिवार्य हीनता के रूप में देखते थे तथा प्रत्येक गृहस्थ के मन में यह भाव रहता था कि कब उसे सुयोग मिले कि वह संन्यासी हो जाए।
Sanskriti Ke Chaar Adhyay (Hindi)
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