नारी गृहस्थ जीवन का प्रतीक है। इसलिए, जब–जब प्रवृत्ति का उत्थान हुआ, नारी और गृहस्थ, दोनों की पद–मर्यादा में वृद्धि हुई है। किन्तु, अपने देश में तो वैदिक काल को छोड़कर, प्राय:, सदैव निवृत्ति का ही बोलबाला रहा। अतएव, नारी की मर्यादा वहाँ सदैव दबी रही।