Abhishek Anand

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कोई भी पन्थ कर्मठ गृहस्थ को योगी, संन्यासी अथवा भक्त के समकक्ष मानने को तैयार नहीं था। यह अवस्था बहुत–कुछ उपनिषदों के समय से आ रही थी।
Sanskriti Ke Chaar Adhyay (Hindi)
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