दयानन्द से भेंट करने गया। मुझे ऐसा दिखा कि उन्हें थोड़ी–बहुत शक्ति प्राप्त हो चुकी है। उनका वक्ष-स्थल सदैव आरक्त दिखायी पड़ता था। वे वैखरी अवस्था में थे। रात–दिन लगातार शास्त्रों की ही चर्चा किया करते थे। अपने व्याकरण–ज्ञान के बल पर उन्होेंने शास्त्र–वाक्यों के अर्थ में उलट–फेर कर दिया है। ‘मैं ऐसा करूँगा, मैं अपना मत स्थापित करूँगा’ ऐसा कहने में उनका अहंकार दिखाई देता है।’’