Abhishek Anand

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उन्नीसवीं सदी के बाद से भारतीय साहित्य में क्रान्तिकारी और अन्य–विरोधी स्वर बड़े जोर से गूँजने लगे। यह, स्पष्ट ही, गीता और वेदान्त की प्रवृत्तिमार्गी टीका का परिणाम है।
Sanskriti Ke Chaar Adhyay (Hindi)
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