पुरुष शिक्षित और स्वस्थ हों, नारियाँ शिक्षिता और सबला हों, लोग संस्कृत पढ़ें और हवन करें, कोई भी हिन्दू मूर्ति–पूजा का नाम न ले, न पुरोहितों, देवताओं और पंडों के फेर में पड़े, ये उपदेश उन सभी प्रान्तों में कोई पचास साल तक गूँजते रहे, जहाँ आर्य–समाज का थोड़ा–बहुत भी प्रचार था।