इस आन्दोलन की यह प्रवृत्ति तब से आज तक बरक़रार रही है, जिसके अनेक उदाहरण हम इक़बाल की कविताओं में देख चुके हैं। यूरोपीय आतंक के कारण मुसलमानों में एकता ही सुदृढ़ नहीं हुई, बल्कि वे बगावत पर भी उतर आए एवं सन् 1870 ई. के आस–पास, संसार के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक के मुसलमान एक साथ छिट–पुट विद्रोह कर उठे।