Roshan Rai

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अब मुसलमानी बर्तनों की बात खटकती है तब मुसलमानी और हिन्दुआनी बर्तन अलग-अलग होते थे। तब दिलों में फ़र्क नहीं था। सिर्फ़ बर्तनों तक सीमित था। अब बर्तन का भेद-भाव तो मिट गया पर दिलों का बढ़ गया। छोटी चीज़ पाने के लिए बड़ी चीज़ खो दी।
ढाई घर
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