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चलते-चलते गवर्नर साहब बड़े राय से बोले— “इनसे कहिए, आपकी मिसाल नज़रों के सामने रखें। दरख़्त जब तक रहता है तभी तक उसका साया मिलता है—अपनी वज़हदारी से जो साया बनता है वह हमेशा साथ देता है...” धीरे-से कहते हुए निकल गये “ईमानदारी और वज़हदारी आदमी के लिए ज़रूरी चीज़ें हैं।” मझले राय सन्न रह गये थे। और किसी ने सुना हो या न सुना हो लेकिन उन्होंने सुन लिया था। बड़े राय उसी जगह स्थिर खड़े थे। जब तक गवर्नर साहब चले नहीं गये, वे उसी तरह बेंत-से टिके खड़े रहे।
अब मुसलमानी बर्तनों की बात खटकती है तब मुसलमानी और हिन्दुआनी बर्तन अलग-अलग होते थे। तब दिलों में फ़र्क नहीं था। सिर्फ़ बर्तनों तक सीमित था। अब बर्तन का भेद-भाव तो मिट गया पर दिलों का बढ़ गया। छोटी चीज़ पाने के लिए बड़ी चीज़ खो दी।