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by
Osho
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January 14 - February 18, 2021
उस मूर्तिकार ने कहा कि मूर्ति तो पत्थर के भीतर छिपी है, उसे बनाने की जरूरत नहीं है; सिर्फ उसके ऊपर जो व्यर्थ पत्थर जुड़ा है उसे अलग कर देने की जरूरत है और मूर्ति प्रकट हो जाएगी। मूर्ति बनाई नहीं जाती, मूर्ति सिर्फ आविष्कृत होती है, डिस्कवर होती है, अनावृत होती है, उघाड़ी जाती है।
सच यह है कि स्वास्थ्य पैदा नहीं करना होता, या तो छिप जाता है बीमारियों में या बीमारियां हट जाती हैं तो प्रकट हो जाता है। स्वास्थ्य हममें है। स्वास्थ्य हमारा स्वभाव है। प्रेम हममें है। प्रेम हमारा स्वभाव है। इसलिए यह बात गलत है कि मनुष्य को समझाया जाए कि तुम प्रेम पैदा करो। सोचना यह है कि प्रेम पैदा क्यों नहीं हो पा रहा है? बाधा क्या है? अड़चन क्या है? कहां रुकावट डाल दी गई है? अगर कोई भी रुकावट न हो तो प्रेम प्रकट होगा ही, उसे सिखाने की और समझाने की कोई भी जरूरत नहीं है। अगर मनुष्य के ऊपर गलत संस्कृति और गलत संस्कार की धाराएं और बाधाएं न हों, तो हर आदमी प्रेम को उपलब्ध होगा ही। यह अनिवार्यता
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प्रकृति का तो एक सहयोग है, प्रकृति तो एक हार्मनी है। वहां जो बाधा भी दिखाई पड़ती है, वह भी शायद शक्ति को जगाने के लिए चुनौती है। वहां जो विरोध भी दिखाई पड़ता है, वह भी शायद भीतर प्राणों में जो छिपा है, उसे प्रकट करने के लिए बुलावा है।
वहां शायद कोई बाधा नहीं है। वहां हम बीज को दबाते हैं जमीन में; दिखाई पड़ता है कि जमीन की एक पर्त बीज के ऊपर पड़ी है, बाधा दे रही है। लेकिन वह बाधा नहीं दे रही। अगर वह पर्त न होगी, तो बीज अंकुरित भी नहीं हो पाएगा। ऐसे दिखाई पड़ता है कि एक पर्त जमीन की बीज को नीचे दबा रही है। लेकिन वह पर्त दबा इसलिए रही है, ताकि बीज दबे, गले और टूट जाए और अंकुर बन जाए। ऊपर से दिखाई पड़ता है कि वह जमीन बाधा दे रही है, लेकिन वह जमीन मित्र है और सहयोग कर रही है बीज को प्रकट करने में।
काम से लड़ना नहीं है, काम के साथ मैत्री स्थापित करनी है और काम की धारा को और ऊंचाइयों तक ले जाना है। किसी ऋषि ने किसी वधू को, नव वर और वधू को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि तेरे दस पुत्र पैदा हों और अंततः तेरा पति तेरा ग्यारहवां पुत्र हो जाए। वासना रूपांतरित हो, तो पत्नी मां बन सकती है। वासना रूपांतरित हो, तो काम प्रेम बन सकता है। लेकिन काम ही प्रेम बनता है, काम की ऊर्जा ही प्रेम की ऊर्जा में विकसित होती है, फलित होती है। लेकिन हमने मनुष्य को भर दिया है काम के विरोध में। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रेम तो पैदा नहीं हो सका--क्योंकि वह तो आगे का विकास था, काम की स्वीकृति से आता--प्रेम तो विकसित नहीं हुआ
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जबान की चूक कभी भी नहीं होती है। भीतर कुछ चलता होता है, तो कभी-कभी बेमौके जबान से निकल जाता है।
कसम खाने वालों से हमेशा सावधान रहना जरूरी है; क्योंकि जो भी कसम खाता है, उसके भीतर उस कसम से भी मजबूत कोई बैठा है, जिसके खिलाफ वह कसम खा रहा है। और वह जो भीतर बैठा है वह ज्यादा भीतर है, कसम ऊपर है और बाहर है। कसम चेतन मन से खाई गई है। और जो भीतर बैठा है, वह अचेतन की परतों तक समाया हुआ है। अगर मन के दस हिस्से कर दें, तो कसम एक हिस्से ने खाई है, नौ हिस्सा उलटा भीतर खड़ा हुआ
संयमी आदमी बड़े खतरनाक होते हैं; क्योंकि उनके भीतर ज्वालामुखी उबल रहा है, और ऊपर से वे संयम साधे हुए हैं। और इस बात को स्मरण रखना कि जिस चीज को साधना पड़ता है--साधने में इतना श्रम लग जाता है कि साधना पूरे वक्त हो नहीं सकती। फिर शिथिल होना पड़ेगा, विश्राम करना पड़ेगा। अगर मैं जोर से मुट्ठी बांध लूं, तो कितनी देर बांधे रख सकता हूं? चौबीस घंटे? जितनी जोर से बांधूंगा, उतनी ही जल्दी थक जाऊंगा और मुट्ठी खुल जाएगी।
जितना सधा हुआ संत होता है उतना ही खतरनाक आदमी होता है; क्योंकि उसका विश्राम का वक्त आएगा, चौबीस घंटे में घंटे भर को उसे शिथिल होना पड़ेगा। उसी बीच दुनिया भर के पाप उसके भीतर खड़े हो जाएंगे। नरक सामने आ जाएगा।
इसलिए जिन्होंने कहा कि विषयानंद और ब्रह्मानंद भाई-भाई हैं, उन्होंने जरूर सत्य कहा है। वे सहोदर हैं, एक
जिस आदमी का मैं जितना मजबूत है, उतना ही उस आदमी की सामर्थ्य दूसरे से संयुक्त हो जाने की कम हो जाती है।
सार्त्र ने कहीं एक अदभुत वचन कहा है। कहा है कि दि अदर इज़ हेल। वह जो दूसरा है, वही नरक है। लेकिन सार्त्र ने यह नहीं कहा कि व्हाय दि अदर इज़ अदर? वह दूसरा दूसरा क्यों है? वह दूसरा दूसरा इसलिए है कि मैं मैं हूं। और जब तक मैं मैं हूं, तब तक दुनिया में हर चीज दूसरी है, अन्य है, भिन्न है। और जब तक भिन्नता है, तब तक प्रेम का अनुभव नहीं हो सकता।
अगर मेरे और किसी दूसरे व्यक्ति के बीच यह अनुभव फलित हो जाए कि हमारी दीवालें गिर जाएं, हम किसी भीतर के तल पर एक हो जाएं, एक संगीत, एक धारा, एक प्राण, तो यह अनुभव है प्रेम। और अगर ऐसा ही अनुभव मेरे और समस्त के बीच घटित हो जाए कि मैं विलीन हो जाऊं और सब और मैं एक हो जाऊं, तो यह अनुभव है परमात्मा।
बड़ों को छोटों से प्रेम हो सकता है, अगर बड़ों को पता न हो कि हम बड़े हैं।
अहंकार हमेशा अपने से बड़ों को प्रेम करने की कोशिश करता है। अहंकार हमेशा अपने से बड़ों से संबंध जोड़ता
प्रेम जब भी कुछ दे पाता है, तब खुश हो जाता है। अहंकार जब भी कुछ ले पाता है, तभी खुश होता है।
प्रेम आनंदित होता है, जब प्रेम किसी के लिए छाया बन जाता है। अहंकार आनंदित होता है, जब किसी की छाया छीन लेता है।
प्रेम की एक ही उदासी है--जब वह बांट नहीं पाता, तो उदास हो जाता है। जब वह दे नहीं पाता, तो उदास हो जाता है। और प्रेम की एक ही धन्यता है कि जब वह बांट देता है, लुटा देता है, तो वह आनंदित हो जाता है।
धर्म को मैं जीने की कला कहता हूं। वह आर्ट ऑफ लिविंग है। धर्म जीवन का त्याग नहीं, जीवन की गहराइयों में उतरने की सीढ़ियां है। धर्म जीवन की तरफ पीठ कर लेना नहीं, जीवन की तरफ पूरी तरह आंख खोलना है।
अगर हम सारे जीवन को देखें, तो जीवन जन्मने की एक अनंत क्रिया का नाम है। जीवन एक ऊर्जा है, जो स्वयं को पैदा करने के लिए सतत संलग्न है और सतत चेष्टाशील है।
कुए कहता है, हमारी चेतना का एक नियम है--लॉ ऑफ रिवर्स इफेक्ट। हम जिस चीज से बचना चाहते हैं, चेतना उसी पर केंद्रित हो जाती है और परिणाम में हम उसी से टकरा जाते हैं।
धार्मिक आदमी मैं उसको कहता हूं जो जीवन के सारे सत्यों को सीधा साक्षात्कार करने की हिम्मत रखता है। जो इतने कमजोर, काहिल और नपुंसक हैं कि जीवन के तथ्यों का सामना भी नहीं कर सकते, उनके धार्मिक होने की कोई उम्मीद कभी नहीं हो सकती है।
हर आदमी के जीवन में दो तस्वीरें हैं। हर आदमी के भीतर शैतान है और हर आदमी के भीतर परमात्मा भी। और हर आदमी के भीतर नरक की भी संभावना है और स्वर्ग की भी। हर आदमी के भीतर सौंदर्य के फूल भी खिल सकते हैं और कुरूपता के गंदे डबरे भी बन सकते हैं। प्रत्येक आदमी इन दो यात्राओं के बीच निरंतर डोल रहा है। ये दो छोर हैं, जिनमें से आदमी किसी को भी छू सकता है। और अधिक लोग नरक के छोर को छू लेते हैं और बहुत कम सौभाग्यशाली हैं जो अपने भीतर परमात्मा को उघाड़ पाते हों।
नीत्शे ने एक वचन कहा है, जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिला कर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी। सेक्स मरा तो नहीं, सिर्फ जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो गई बात। वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है।
जब कोई मां अपने बच्चे को कहती है कि मैं तेरी मां हूं इसलिए प्रेम कर, तब वह गलत शिक्षा दे रही है। क्योंकि जिस प्रेम में ‘इसलिए’ लगा हुआ है, ‘देयरफोर’, वह प्रेम झूठा है। जो कहता है, इसलिए प्रेम करो कि मैं बाप हूं, वह गलत शिक्षा दे रहा है। वह कारण बता रहा है प्रेम का। प्रेम अकारण होता है, प्रेम कारण सहित नहीं होता। मां कहती है, मैं तेरी मां हूं, मैंने तुझे इतने दिन पाला-पोसा, बड़ा किया, इसलिए प्रेम कर! वह वजह बता रही है, प्रेम खत्म हो गया। अगर वह प्रेम भी होगा तो बच्चा झूठा प्रेम दिखाने की कोशिश करेगा--क्योंकि यह मां है, इसलिए प्रेम दिखाना पड़ रहा है। नहीं, प्रेम की शिक्षा का मतलब है: प्रेम का कारण
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क्या आपको पता है कि एक आदमी एक के प्रति प्रेमपूर्ण है और दूसरे के प्रति घृणापूर्ण हो सकता है? यह असंभव है। प्रेमपूर्ण आदमी प्रेमपूर्ण होता है, आदमियों से कोई संबंध नहीं है उस बात का। अकेले में बैठता है तो भी प्रेमपूर्ण होता है।
प्रेम रिलेशनशिप नहीं है, प्रेम है स्टेट ऑफ माइंड। वह मनुष्य के व्यक्तित्व का भीतरी अंग है।
कोई अपरिचित मित्र द्वार पर खड़ा है, द्वार खोल!
उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन जगह तो बहुत कम है, हम दो के लायक ही मुश्किल से है। कोई तीसरा आदमी भीतर आएगा तो हम क्या करेंगे? उस फकीर ने कहा, पागल, यह किसी अमीर का महल नहीं है कि छोटा पड़ जाए, यह गरीब की झोपड़ी है। अमीर का महल छोटा पड़ जाता है हमेशा, एक मेहमान आ जाए तो महल छोटा पड़ जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है।
उस फकीर ने कहा, तुम्हें शायद पता नहीं, अमीर के दरवाजे पर आदमी के साथ भी गधे जैसा व्यवहार किया जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है, हम गधे के साथ भी आदमी जैसा व्यवहार करने की आदत से भरे
जीवन में तृप्ति के क्षण वे ही रहे हैं, जो बेशर्त प्रेम के क्षण रहे होंगे, जब कोई शर्त न रही होगी प्रेम की।
कोई आदमी किसी भी क्षण इतनी दूर नहीं निकल गया है कि वापस न लौट आए। कोई आदमी कितने ही गलत रास्तों पर चला हो, ऐसी जगह नहीं पहुंच गया है कि ठीक रास्ता उसे दिखाई न पड़ सके। कोई आदमी कितने ही हजारों वर्षों से अंधकार में रह रहा हो, इसका मतलब यह नहीं है कि वह दीया जलाएगा तो अंधकार कहेगा कि मैं हजार वर्ष पुराना हूं, इसलिए नहीं टूटता! दीया जलाने से एक दिन का अंधकार भी टूटता है, हजार साल का अंधकार भी उसी तरह टूट जाता है। दीया जलाने की चेष्टा बचपन में आसानी से हो सकती है, बाद में थोड़ी कठिनाई है।
इसलिए जिन समाजों ने यह समझा कि विवाह को स्थिर बनाना जरूरी है--एक ही विवाह पर्याप्त हो, बदलाहट की जरूरत न पड़े, उनको प्रेम अलग कर देना पड़ा। क्योंकि प्रेम होता है मन से और मन चंचल है।
जो समाज प्रेम के आधार पर विवाह को निर्मित करेंगे, उन समाजों में तलाक अनिवार्य होगा। उन समाजों में विवाह परिवर्तित होगा; विवाह स्थायी व्यवस्था नहीं हो सकती। क्योंकि प्रेम तरल है। मन चंचल है। शरीर स्थिर और जड़ है।
गोडसे को पता नहीं कि गांधी के भक्त और गांधी के अनुयायी गांधी को इतने दूर तक स्मरण कराने में कभी भी सफल नहीं हो सकते थे, जितना अकेले गोडसे ने कर दिया है। और अगर गांधी ने मरते वक्त, जब उन्हें गोली लगी और हाथ जोड़ कर गोडसे को नमस्कार किया होगा, तो बड़ा अर्थपूर्ण था वह नमस्कार। वह अर्थपूर्ण था कि मेरा अंतिम शिष्य सामने आ गया। अब जो मुझे आखिरी और हमेशा के लिए अमर किए दे रहा है। भगवान ने आदमी भेज दिया जिसकी जरूरत थी।
खाट पर मरने वाले हमेशा के लिए मर जाते हैं, गोली खाकर मरने वालों का मरना बहुत मुश्किल हो जाता है।
असल में, जिस चीज को हम जिंदगी में उपलब्ध नहीं कर पाते, बातचीत करके उसको पूरा कर लेते हैं।
लेकिन कभी आपने सोचा कि स्त्रियां इतनी बातें क्यों करती हैं? पुरुष काम करते हैं, स्त्रियों के हाथ में कोई काम नहीं है। और जब काम नहीं होता तो बात होती है।

