Neha Sharma

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क्योंकि युद्ध में जीत कभी भी उसे नहीं मिलती है, प्रज्ञा जिसकी विकल, द्विधा-कुण्ठित कृपाण की धार है, परम धर्म पर टिकने की सामर्थ्य नहीं है और न आपद्धर्म जिसे स्वीकार है।
परशुराम की प्रतीक्षा
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