परशुराम की प्रतीक्षा
Rate it:
8%
Flag icon
जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है, या किसी लोभ के विवश मूक रहता है, उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है, यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।
8%
Flag icon
जो छल-प्रपंच, सबको प्रश्रय देते हैं, या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं; यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है, भारत अपने घर में ही हार गया है।
9%
Flag icon
जब तक प्रसन्न यह अनल, सुगुण हँसते हैं; है जहाँ खड्ग, सब पुण्य वहीं बसते हैं। वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है, वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है। तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है, लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है। असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है, पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।
11%
Flag icon
हम पर अपने पापों का बोझ न डालें, कह दो सबसे, अपना दायित्व सँभालें। कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से, आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से, सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें, हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।
11%
Flag icon
हम दें तुमको विजय, हमें तुम बल दो, दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो। हों खड़े लोग कटिबद्ध वहाँ यदि घर में, है कौन हमें जीते जो यहाँ समर में?
12%
Flag icon
रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा, अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।
14%
Flag icon
जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है, माँ के किरीट पर ही यह वार हुआ है। अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है, जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।
14%
Flag icon
कुत्सित कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे, हम बिना लिये प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे, अरि का विरोध-अवरोध नहीं छोड़ेंगे, जब तक जीवित हैं, क्रोध नहीं छोड़ेंगे।
22%
Flag icon
गाओ कवियो! जयगान, कल्पना तानो, आ रहा देवता जो, उसको पहचानो। है एक हाथ में परशु, एक में कुश है, आ रहा नये भारत का भाग्यपुरुष है।
23%
Flag icon
सच है, आँखों में आग लिये आता है, पर, यह स्वदेश का भाग लिये आता है। मत डरो, सन्त यह मुकुट नहीं माँगेगा, धन के निमित्त यह धर्म नहीं त्यागेगा।
25%
Flag icon
विज्ञान धर्म के धड़ से भिन्न न होगा, भवितव्य भूत-गौरव से छिन्न न होगा।
26%
Flag icon
सिखलायेगा वह, ऋत एक ही अनल है, जिन्दगी नहीं वह, जहाँ नहीं हलचल है। जिनमें दाहकता नहीं, न तो गर्जन है, सुख की तरंग का जहाँ अन्ध वर्जन है, जो सत्य राख में सने, रुक्ष, रूठे हैं, छोड़ो उनको, वे सही नहीं, झूठे हैं।
27%
Flag icon
आनन्द नहीं, जीवन का लक्ष्य विजय है। जृम्भक, रहस्य-धूमिल मत ऋचा रचो रे! सर्पित प्रसून के मद से बचो, बचो रे!
29%
Flag icon
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाये, मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाये। दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है, मरता है जो, एक ही बार मरता है। तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे! जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे!
31%
Flag icon
शोणित के बदले जहाँ अश्रु बहता है, वह देश कभी स्वाधीन नहीं रहता है।
31%
Flag icon
जब कभी अहं पर नियति चोट देती है, कुछ चीज अहं से बड़ी जन्म लेती है। नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है, वह उसे और दुर्धर्ष बना जाती है।
38%
Flag icon
वे देश शान्ति के सबसे शत्रु प्रबल हैं, जो बहुत बड़े होने पर भी दुर्बल हैं, हैं जिनके उदर विशाल, बाँह छोटी हैं, भोथरे दाँत, पर, जीभ बहुत मोटी है। औरों के पाले जो अलज्ज पलते हैं, अथवा शेरों पर लदे हुए चलते हैं।
39%
Flag icon
उद्‌देश्य जन्म का नहीं कीर्त्ति या धन है, सुख नहीं, धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है; विज्ञान, ज्ञान-बल नहीं, न तो चिन्तन है, जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है। सबसे स्वतन्त्र यह रस जो अनघ पियेगा, पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा।
40%
Flag icon
जीवन अपनी ज्वाला से आप ज्वलित है, अपनी तरंग से आप समुद्वेलित है। तुम वृथा ज्योति के लिए कहाँ जाओगे? है जहाँ आग, आलोक वहीं पाओगे।
57%
Flag icon
ऋषियों को भी सिद्धि तभी तप से मिलती है, जब पहरे पर स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं।
65%
Flag icon
क्योंकि युद्ध में जीत कभी भी उसे नहीं मिलती है, प्रज्ञा जिसकी विकल, द्विधा-कुण्ठित कृपाण की धार है, परम धर्म पर टिकने की सामर्थ्य नहीं है और न आपद्धर्म जिसे स्वीकार है।
66%
Flag icon
समर पाप साकार, समर क्रीड़ा है पागलपन की, सभी द्विधाएँ व्यर्थ समर में साध्य और साधन की।
68%
Flag icon
जब-जब उठा सवाल, सोचने से क़तराकर पड़ा रहा काहिल तू इस बोदी आशा में, कौन करे चिन्तन? खरोंच मन पर पड़ती है। जब दस-बीस जवाब दुकानों में उतरेंगे, हम भी लेंगे उठा एक अपनी पसन्द का।
69%
Flag icon
दोषी केवल वही नहीं, जो नयनहीन था, उसका भी है पाप, आँख थी जिसे, किन्तु, जो बड़ी-बड़ी घड़ियों में मौन, तटस्थ रहा है।