Divyanshu Pandey

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किन्तु, पताका झुकी अगर बलिदान की, गरदन ऊँची रही न हिन्दुस्तान की, पुरुष पीठ पर लिये घाव रोते रहें, आँसू से अपना कलंक धोते रहें।
परशुराम की प्रतीक्षा
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