Divyanshu Pandey

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निर्जर पिनाक हर का टंकार उठा है, हिमवन्त हाथ में ले अंगार उठा है, ताण्डवी तेज फिर से हुंकार उठा है, लोहित में था जो गिरा, कुठार उठा है।
परशुराम की प्रतीक्षा
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