Abhijeet Gaurav

46%
Flag icon
मही प्रदीप्त है, दिशा-दिगन्त लाल-लाल है, व’ देख लो, जवानियों की जल रही मशाल है; व’ गिर रहे हैं आग में पहाड़ टूट-टूट के, व’ आसमाँ से आ रहे हैं रत्न छूट-छूट के, उठो, उठो कुरीतियों की राह तुम भी रोक दो, बढ़ो, बढ़ो, कि आग में अनीतियों को झोंक दो। परम्परा की होलिका जला रहीं जवानियाँ।
परशुराम की प्रतीक्षा
Rate this book
Clear rating