Abhijeet Gaurav

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हैं दुखी मेष, क्यों लहू शेर चखते हैं, नाहक इतने क्यों दाँत तेज़ रखते हैं। पर, शेर द्रवित हो दशन तोड़ क्यों लेंगे? मेषों के हित व्याघ्रता छोड़ क्यों देंगे? एक ही पन्थ, तुम भी आघात हनो रे! मेषत्व छोड़ मेषो! तुम व्याघ्र बनो रे!
परशुराम की प्रतीक्षा
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