Abhijeet Gaurav

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घटा को फाड़ व्योम-बीच गूँजती दहाड़ है, ज़मीन डोलती है और डोलता पहाड़ है; भुजंग दिग्गजों से, कूर्मराज त्रस्त कोल से, धरा उछल-उछल के बात पूछती खगोल से; कि क्या हुआ है सृष्टि को? न एक अंग शान्त है; प्रकोप रुद्र का कि कल्पनाश है, युगान्त है? जवानियों की धूम-सी मचा रहीं जवानियाँ।
परशुराम की प्रतीक्षा
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