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सामने देशमाता का भव्य चरण है, जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है, काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे, पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे। फूटेंगी खर निर्झरी तप्त कुण्डों से, भर जायेगा नगराज रुण्ड-मुण्डों से। माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढ़ेगी, लाशों पर चढ़कर आगे फ़ौज़ बढ़ेगी। पहली आहुति है अभी, यज्ञ चलने दो, दो हवा, देश की आग जरा जलने दो। जब हृदय-हृदय पावक से भर जायेगा, भारत का पूरा पाप उतर जायेगा;