सत्ता का अपना एक नशा होता है और अपनी ज़ात भी। जो भी उस तक पहुँचता है उसकी ज़ात का ही हो जाता है। जो उसकी रंगत में नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता। कभी नहीं पहुँच पाता। उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता है।
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