More on this book
Kindle Notes & Highlights
और इन सबके पीछे दिखाई देगी सियासत की काली स्याह दीवार। हिन्दुस्तान की आज़ादी को जिसने निगल लिया।
ज़मींदारी को खत्म होते हुए देखा तो नए राजाओं को बनते हुए भी देखा।
कहने को तो सियासत ने एक लकीर खींची, मगर वह लकीर आग और ख़ून का एक दरिया बन गई और हजारों-हजार लोग अपनी जड़ों समेत बह गए उस दरिया में…और मैं यहाँ अकेला खड़ा देखता रहा और सुनता रहा…
सत्ता का अपना एक नशा होता है और अपनी ज़ात भी। जो भी उस तक पहुँचता है उसकी ज़ात का ही हो जाता है। जो उसकी रंगत में नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता। कभी नहीं पहुँच पाता। उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता है।
कहते हैं न ताकतवरों के ऐब नहीं होते, उनके शौक होते हैं। अवाम जिसे गुनाह समझती है वो तो इनके शौक हुआ करते हैं।
इंसान का दिल सचमुच मोम की तरह ही होता है, वक़्त की गर्मी के साथ सब कुछ पिघल जाता है।
“आजकल सही काम करने में और पगड़ी उछालने में बहुत कम फर्क रह गया है।