चुनी हुई कविताएँ
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Read between May 26 - August 17, 2018
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दाँत में फँसा तिनका, आँख की किरकिरी, पाँव में चुभा काँटा, आँखों की नींद, मन का चैन उड़ा देते हैं।
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छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
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मन हारकर, मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं।
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आदमी को चाहिए कि वह जूझे परिस्थितियों से लड़े, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।
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किंतु कितना भी ऊँचा उठे, मनुष्यता के स्तर से न गिरे, अपने धरातल को न छोड़े, अंतर्यामी से मुँह न मोड़े।
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आदमी की पहचान, उसके धन या आसन से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर कुबेर की संपदा भी रोती है।