Koustubh

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पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी उँचा दिखाई देता है। जड़ में खड़ा आदमी नीचा दिखाई देता है। आदमी न ऊँचा होता है, न नीचा होता है, न बडा होता है, न छोटा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होता है। पता नहीं, इस सीधे-सपाट सत्य को दुनिया क्यों नहीं जानती? और अगर जानती है, तो मन से क्यों नहीं मानती? इससे फर्क नहीं पड़ता कि आदमी कहाँ खड़ा है? पथ पर या रथ पर? तीर पर या प्राचीर पर? फर्क इससे पड़ता है कि जहाँ खड़ा है, या जहाँ उसे खड़ा होना पड़ा है, वहाँ उसका धरातल क्या है? हिमालय की चोटी पर पहुँच, एवरेस्ट-विजय की पताका फहरा, कोई विजेता यदि ईर्ष्या से दग्ध अपने साथी से विश्वासघात करे, तो क्या उसका अपराध इसलिए क्षम्य हो जाएगा ...more
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Koustubh
Gem of a poem
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