Koustubh

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जीवन की ढलने लगी साँझ उमर घट गई डगर कट गई जीवन की ढलने लगी साँझ। बदले हैं अर्थ शब्द हुए व्यर्थ शांति बिना खुशियाँ हैं बाँझ। सपनों से मीत बिखरा संगीत ठिठक रहे पाँव और झिझक रही झाँझ। जीवन की ढलने लगी साँझ।
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