Koustubh

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भीड़ में खो जाना, यादों में डूब जाना, स्वयं को भूल जाना, अस्तित्व को अर्थ, जीवन को सुगंध देता है। धरती को बौनों की नहीं, ऊँचे कद के इनसानों की जरूरत है। इतने ऊँचे कि आसमान को छू लें, नए नक्षत्रों में प्रतिभा के बीज बो लें, किंतु इतने ऊँचे भी नहीं, कि पाँव तले दूब ही न जमे, कोई काँटा न चुभे, कोई कली न खिले। न वसंत हो, न पतझड़, हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़, मात्र अकेलेपन का सन्नाटा। मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना गैरों को गले न लगा सकूँ इतनी रुखाई कभी मत देना।
Koustubh
Reminiscing ones roots
चुनी हुई कविताएँ
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