Nitish Kumar Singh

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ऊँचे पहाड़ पर, पेड नहीं लगते, पौंधे नहीं उगते, न घास ही जमती है। जमती है सिर्फ बर्फ, जो कफन की तरह सफेद और मौत की तरह ठंडी होती है। खेलती, खिलखिलाती नदी, जिसका रूप धारण कर अपने भाग्य पर बूँद-बूँद रोती है।
चुनी हुई कविताएँ
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