निरालाजी ने उस वीरांगना को नमन करने के लिए ताँगा थोड़ी देर रुकवा लिया। उनकी नजर लक्ष्मीबाई के स्मारक के निकट बैठी एक निर्धन महिला पर गई। वह महिला सर्दी से अपने को बचाने के प्रयास में लगी थी। जैसे ही निरालाजी की नजर उस महिला के ऊपर गई, तो महाकवि ने अपना कंबल उतारकर उस महिला को ओढ़ा दिया।

