Navita Jain

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टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी। हार नही मानूँगा, रार नई ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ। गीत नया गाता हूँ।
चुनी हुई कविताएँ
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