Prabhat Gaurav

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पुरुष सदा आक्रान्त विचरता मादक प्रणय-क्षुधा से, जय से उसको तृप्ति नहीं, सन्तोष न कीर्त्ति-सुधा से। असफलता में उसे जननि का वक्ष याद आता है, संकट में युवती का शय्या-कक्ष याद आता है।
उर्वशी
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