Prabhat Gaurav

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किन्तु, बन्ध को तोड़ ज्वार नारी में जब जगता है, तब तक नर का प्रेम शिथिल, प्रशमित होने लगता है। पुरुष चूमता हमें अर्ध निद्रा में हम को पाकर, पर, हो जाता विमुख प्रेम के जग में हमें जगाकर।
उर्वशी
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