Prabhat Gaurav

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"नारी ही वह महासेतु, जिस पर अदृश्य से चल कर नए मनुज, नव प्राण दृश्य जग में आते रहते हैं। नारी ही वह कोष्ठ, देव, दानव, मनुष्य से छिपकर महा शून्य, चुपचाप, जहाँ आकार ग्रहण करता है। "सच पूछो तो, प्रजा-सृष्टि में क्या है भाग पुरुष का?
उर्वशी
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