Prabhat Gaurav

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नर का भूषण विजय नहीं, केवल चरित्र उज्ज्वल है। कहती हैं नीतियाँ, जिसे भी विजयी समझ रहे हो, नापो उसे प्रथम उन सारे प्रकट, गुप्त यत्नों से, विजय-प्राप्ति-क्रम में उसने जिनका उपयोग किया है। डाल न दे शत्रुता सुरों से हमें दनुज-बाँहों में, महाराज!
उर्वशी
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