Prabhat Gaurav

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फिर वही उद्विग्न चिन्तन, फिर वही पृच्छा चिरन्तन, “रूप की आराधना का मार्ग आलिंगन नहीं तो और क्या है? स्नेह का सौन्दर्य को उपहार रस-चुम्बन नहीं तो और क्या है?’’
उर्वशी
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