Prabhat Gaurav

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दिवस रुदन में, रात आह भरने में कट जाती है। मन खोया-खोया, आँखें कुछ भरी-भरी रहती है; भींगी पुतली में कोई तस्वीर खड़ी रहती है।
उर्वशी
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