Prabhat Gaurav

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अप्सरियाँ उद्विग्न भोगतीं रस जिस चिर यौवन का, उससे कहीं महत् सुख है जो हमें प्राप्त होता है निश्छल, शान्त, विनम्र, प्रेमभर उर के उत्सर्जन से।
उर्वशी
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