Prabhat Gaurav

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"बाँध रहा जो तन्तु लोक को लोकोत्तर जगती से, उसका अन्तिम छोर, न जानें, कहाँ अदृश्य छिपा है। दृश्य छोर है, किन्तु, यहाँ प्रत्यक्ष त्रिया के उर में!
उर्वशी
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