Prabhat Gaurav

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तुम पंथ जोहते रहो, अचानक किसी रात मैं आऊँगी। अधरों में अपने अधरों की मदिरा उँड़ेल, मैं तुम्हें वक्ष से लगा युगों की संचित तपन मिटाऊँगी।
उर्वशी
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