Prabhat Gaurav

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इसीलिए, कहती हूँ, जब तक हरा-भरा उपवन है, किसी एक के संग बाँध लो तार निखिल जीवन का; न तो एक दिन वह होगा जब गलित, म्लान अंगों पर क्षण भर को भी किसी पुरुष की दृष्टि नहीं विरमेगी; बाहर होगा विजन निकेतन, भीतर प्राण तजेंगे अन्तर के देवता तृषित भीषण हाहाकारों में।
उर्वशी
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