यह तो नारी ही है, जो सब यज्ञ पूर्ण करती है। सत्त्व-भार सहती असंग, सन्तति असंग जनती है; और वही शिशु को ले जाती मन के उच्च निलय में, जहाँ निरापद, सुखद कक्ष है शैशव के झूले का। "शुभे! सदा शिशु के स्वरूप में ईश्वर ही आते हैं। महापुरुष की ही जननी प्रत्येक जननि होती है; किन्तु, भविष्यत् को समेट अनुकूल