Prabhat Gaurav

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दो प्रसून एक ही वृन्त पर जैसे खिले हुए हों। फिर रह जाता भेद कहाँ पर शिशिर, घाम, पावस का? एक संग हम युवा, संग ही संग वृद्ध होते हैं।
उर्वशी
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