Prabhat Gaurav

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माता वही, पालती है जो शिशु को हृदय लगा कर। सखी! दयामयि देवि! शरण्ये! शुभे! स्वसे! कल्याणी! मैं क्या कहूँ, वंश से बिछुड़ा कब तक आयु रहेगा यहाँ धर्म की शरण, तुम्हारे अंचल की
उर्वशी
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