Prabhat Gaurav

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देखा उसे महर्षि च्यवन ने और सुप्त महिमा को जगा दिया आयास-मुक्त, निश्छल प्रशस्ति यह गाकर, ‘हरि प्रसन्न यदि नहीं, सिद्धि बनकर तुम क्यों आई हो?" लगा मुझे, सर्वत्र देह की पपरी टूट रही है,
उर्वशी
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