"स्वर्ग-स्वर्ग मत कहो, स्वर्ग में सब सौभाग्य भरा है, पर, इस महास्वर्ग में मेरे हित क्या आज धरा है? स्वर्ग स्वप्न का जाल, सत्य का स्पर्श खोजती हूँ मैं, नहीं कल्पना का सुख, जीवित हर्ष खोजती हूँ मैं। तृप्ति नहीं अब मुझे साँस भर-भर सौरभ पीने से, ऊब गई हूँ दबा कंठ, नीरव रहकर जीने से।