इसमें क्या आश्चर्य? प्रीति जब प्रथम-प्रथम जगती है, दुर्लभ स्वप्न-समान रम्य नारी नर को लगती है। कितनी गौरवमयी घड़ी वह भी नारी-जीवन की, जब अजेय केसरी भूल सुध-बुध समस्त तन-मन की पद पर रहता पड़ा, देखता अनिमिष नारी-मुख को, क्षण-क्षण रोमाकुलित, भोगता गूढ़ अनिर्वच सुख को!