जब देवी सुकन्या यह सोचती हैं कि नर-नारी के बीच सन्तुलन कैसे लाया जाए, तब उनके मुँह से यह बात निकल पड़ती है कि यह सृष्टि, वास्तव में, पुरुष की रचना है। इसीलिए, रचयिता ने पुरुषों के साथ पक्षपात किया, उन्हें स्वत्व-हरण की प्रवृत्तियों से पूर्ण कर दिया। किन्तु, पुरुषों की रचना यदि नारियाँ करने लगें, तो पुरुष की कठोरता जाती रहेगी और वह अधिक भावप्रवण एवं मृदुलता से युक्त हो जाएगा।